काठमांडू। नेपाल में छात्र आंदोलनों और Gen Z प्रोटेस्ट के दबाव में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध और भ्रष्टाचार के आरोपों ने युवाओं में गुस्सा भड़का दिया, जिसके चलते स्कूल-कॉलेजों के छात्र-छात्राएं सड़कों पर उतर आए। इस आंदोलन ने न केवल ओली सरकार को गिरा दिया, बल्कि यह भी स्पष्ट कर दिया कि नेपाल की नई पीढ़ी अब पारंपरिक दलों और पुराने नेताओं से उम्मीद खो चुकी है।
इस राजनीतिक उथल-पुथल के बीच प्रदर्शनकारी बलेंद्र शाह उर्फ़ बालेन को देश का अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं।
बालेन शाह कौन हैं?
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पेशे से सिविल इंजीनियर और जुनून से रैपर, बालेन शाह का राजनीतिक सफर किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है।
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वे काठमांडू के मेयर चुने गए और युवाओं की आवाज बुलंद करने के लिए पहचाने जाते हैं।
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उन्होंने पारदर्शिता, जवाबदेही और ईमानदार नेतृत्व का वादा करके अपनी अलग छवि बनाई।
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कई बार भारत पर तीखी टिप्पणी भी कर चुके हैं, जैसे—नेपाल सरकार को “भारत का दास” कहना, या फिल्म आदिपुरुष को काठमांडू में बैन करना क्योंकि उसमें सीता माता को “भारत की बेटी” बताया गया था।
क्यों हो रही है चर्चा?
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ओली के इस्तीफे के बाद युवाओं की पहली पसंद बालेन शाह हैं।
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Gen Z उन्हें बदलाव का प्रतीक मानती है, क्योंकि वे उसी डिजिटल पीढ़ी से आते हैं, जिसने सोशल मीडिया और नागरिक आंदोलनों को हथियार बनाया।
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सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी उन्हें अपनी आवाज और भविष्य की उम्मीद मान रहे हैं।
चुनौती क्या है?
हालांकि सवाल यही है कि क्या स्थानीय स्तर पर कामयाब रहे बालेन शाह, राष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं को संभाल पाएंगे?
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संसद में पारंपरिक पार्टियों का अभी भी दबदबा है।
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सत्ता की बागडोर थामने के लिए सिर्फ लोकप्रियता काफी नहीं होगी।
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सड़क पर संघर्ष करके प्रधानमंत्री बनना आसान हो सकता है, लेकिन सड़कों की उम्मीदों को पूरा करना कहीं ज्यादा कठिन है।
सार यह कि नेपाल की राजनीति एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है। बालेन शाह युवाओं की आकांक्षाओं के प्रतीक तो बन गए हैं, लेकिन क्या वे राष्ट्रीय राजनीति में भी उतने ही प्रभावी साबित होंगे, यह आने वाला समय ही बताएगा।